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-15th February 2015

‘नीली क्रांति’ से साकार हो रहा आर्थिक आत्मनिर्भरता का संकल्प

हिमाचल प्रदेश में मत्स्य उद्योग लोगों को आजीविका के अनेकों अवसर उपलब्ध करवाने के साथ-साथ राज्य के लिए राजस्व सृजन का भी महत्वपूर्ण स्त्रोत बनकर उभरा है। प्रदेश सरकार ने राज्य में नीली क्रांति लाने के उददेश्य से अनेक कदम उठाए हैं। वर्तमान प्रदेश सरकार युवाओं को स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने पर बल दे रही है। इसी कड़ी में युवाओं को मत्स्य पालन गतिविधियों की ओर आकर्षित करने के लिए अनेक प्रोत्साहन प्रदान किए जा रहे हैं। आर्थिक सहायता और आवश्यक तकनीकी जानकारी के रूप में दिए जा रहे प्रोत्साहनों के फलस्वरूप मत्स्य पालन प्रदेश में आर्थिक स्वावलंबन का आधार बना है। सरकार के प्रयासों तथा मछली पालन के प्रति लोगों की बढ़ती रूचि के फलस्वरूप राज्य के प्रमुख जलाशयों में गत वर्ष 5238 मछुआरों को पूर्णकालीन स्वरोजगार उपलब्ध करवाया गया है, जिनमें गोविन्द सागर में 2652, पौंगडैम में 2479,चमेरा में 74 तथा महाराजा रणजीत सागर में 33 मछुआरे शामिल हैं। युवाओं को मत्स्य पालन गतिविधियों में संलग्न करने के लिए प्रदेश में अनेक योजनाएं लागू की गई हैं। मत्स्य पालन के लिए एक हैक्टेयर क्षेत्र के तालाब निर्माण में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के लाभार्थियों को एक लाख रुपये जबकि सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों लिए 80 हजार रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जा रही है। मत्स्य फार्म मत्स्य पालन गतिविधियों का आधार हंै। हिमाचल प्रदेश मत्स्य पालन विभाग द्वारा 12 मछली बीज फार्मों के माध्यम से मत्स्य सहायक सेवाएं उपलब्ध करवाई जा रही है। इन 12 मत्स्य फार्मों में से 6 ट्राऊट मछली जबकि अन्य 6 कार्प मछली के फार्म कार्यरत हैं। हिमाचल प्रदेश की जलधाराओं में मछलियों की मुख्यतः ट्राऊट, महशीर सहित बेरीलस, ग्लाईप्टोथोरेक्स इत्यादि प्रजातियां पाई जाती हैं। प्रदेश में नीली क्रांति लाने के उद्देश्य से मछली की दो नई प्रजातियां हंगेरियन कामन कार्प व अमूर कामन कार्प आयात की गई हैं। राज्य के सभी जलस्रोत्रों से विगत दो वर्षों की अवधि में 13628.17 लाख रुपये मूल्य की 16818.32 मी. टन मछली का उत्पादन किया गया। जिसमें विभागीय ट्राऊट फार्मों व निजी क्षेत्र से 490.74 मी. टन ट्राऊट मछली का उत्पादन हुआ। प्रदेश में रेनबो ट्राऊट पालन तकनीक के सफलतापूर्वक हस्तांतरण के फलस्वरूप निजी क्षेत्र में 100 ट्राऊट इकाइयों की स्थापना की गई है। प्रदेश सरकार मछुआरों की सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य में मत्स्य आखेट की गतिविधियों में कार्यरत 11251 मछुआरों को जीवन सुरक्षा निधि के अन्तर्गत लाया गया है। मत्स्य आखेट के दौरान मृत्यु होने अथवा पूर्ण अपंगता की दशा में उनके आश्रितों को 2 लाख रुपये तथा आशिंक अपंगता की दशा में 1 लाख रुपये प्रदान किए जाने का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त, अस्पताल में उपचार के दौरान व्यय पर 10 हजार रुपये का बीमा छत्र प्रदान किया जाता है। योजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार 50ः50 के अनुपात में बीमा प्रीमियम राशि का वहन करती है। प्रदेश सरकार मत्स्य आखेट गतिविधियां बंद रहने के दौरान भी मछुआरों को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाती है। इस उददेश्य से बचत एवं राहत योजना के अन्तर्गत मुछआरों को बंद सीजन के दो माह के दौरान 1800 रुपये की धनराशि दो किश्तों में दी जाती है। इसके लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा अनुपातिक 600-600 रुपये का योगदान दिया जाता ह,ै जबकि शेष राशि प्रत्येक मछुआरे द्वारा मत्स्य आखेट गतिविधियों वाले 10 माह में 60 रुपये प्रतिमाह की दर से जमा करवाई जाती है। प्रदेश सरकार द्वारा मत्स्य पालन स्वरोजगार अपनाने वाले उद्यमियों को प्रशिक्षण एवं तकनीकी मार्गदर्शन भी उपलब्ध करवाया जाता है। इसके अलावा, तालाबों तथा टेंकों के जीर्णोद्धार, नये तालाब तैयार करने, फिश फीड यूनिट स्थापित करने के अतिरिक्त एकीकृत मत्स्य पालन इत्यादि के लिए प्रदेश सरकार द्वारा आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाई जा रही है।

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