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14th June 2015

प्रदेश के हरित आवरण की वृद्धि के लिए प्रदेश सरकार कृतसंकल्प

हिमाचल प्रदेश के वन अपने सौंदर्य एवं भव्यता के लिए जाने जाते हैं। प्रदेश के कुल 55,673 वर्ग किलोमीटर भौगोलिक क्षेत्र में से 37,033 वर्ग कि.मी. भू-भाग वनों की श्रेणी में है जो देश के वन क्षेत्र का 4.80 प्रतिशत है। भारतीय वन सर्वेक्षण की वर्ष 2013 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की कुल 14,683 वर्ग कि.मी.भूमि वनाच्छादित है जोकि वर्ष 1991 में 11,780 वर्ग कि.मी. थी। सरकार प्रदेश के हरित आवरण को बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प है ताकि पारिस्थितिकीय संतुलन और पर्यावरण संरक्षण को बनाया रखा जा सके। प्रदेश सरकार के हरित आवरण को बढ़ाने के प्रयासों के तहत इस वित्त वर्ष 45 करोड़ रुपये खर्च करके विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत 8712.45 हैक्टेयर क्षेत्र को वनों के अधीन लाने का लक्ष्य रखा गया है जबकि गत दो वर्षों में 29,745 हैक्टेयर क्षेत्र में पौधरोपण किया गया है। पौधरोपण कार्यक्रम में चैड़ी पत्ती, जंगली फलदार व औषधीय प्रजातियों पर बल दिया जा रहा है ताकि ग्रामीणों को पशुचारे के साथ-साथ जंगली फल व औषधी जैसी वन सम्पदा से सम्बन्धित स्वरोज़गार भी प्राप्त हो सके। इसके साथ ही चालू वित्त वर्ष के दौरान प्रदेश में प्रधानमंत्री सड़क योजना के अंतर्गत निर्मित सड़कों के किनारों पर विभिन्न प्रजातियों के पौधों के पौधरोपण की कार्य योजना तैयार की गई है जिसके अंगर्तत मनरेगा कामगारों के माध्यम से विभिन्न प्रजातियों जैसे शहतूत, जामुन, सरू, शीशम, सफेदा, पीपल, देवदार, नीम इत्यादि के एक लाख पौधे लगाए जाएंगे। इसके अतिरिक्त इस वर्ष विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत प्रदेश में 45 लाख औषधीय पौधे लगाने का लक्ष्य भी रखा गया है जबकि गत दो वर्षों में 90 लाख औषधीय पौधे रोपित किये गये हैं। वनों में नमी बनाए रखने व जंगल की आग बुझाने में वन सरोवरों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वन सरोवर ग्रामीण सामुदायों की अजीविका को बढ़ाने में भी सहायक होते हैं। प्रदेश में इस वर्ष 100 वन सरोवरों के निमार्ण का लक्ष्य रखा गया है जबकि 405 वन सरोवरों का निर्माण सरकार द्वारा पहले ही करवाया जा चुका है। प्रदेश में पौधरोपण कार्यक्रमों के तहत पौधों की मांग को पूरा करने के लिए प्रदेश में 725 पौधशालाएं स्थापित की गई हैं जिनमें बन्द पड़ीं 71 पौधशालाओं को पुनः कार्यशील किया गया है ताकि सरकार की हरित आवरण बढ़ाने की मुहिम में पौधों की किसी प्रकार की कमी न आए। इन पौधशालाओं में जंगली फलदार, चैड़ी पत्ती, औषधीय पौधों आदि के 2.49 करोड़ स्वस्थ पौधे तैयार किए गए हैं। पौधों की जीवित प्रतिशतता बढ़ाने के लिए पौधरोपण क्षेत्रों के रखरखाव की अवधि तीन साल से पांच साल व कैटप्लान के अंतर्गत सात साल की गई है। जलवायु परिवर्तन तथा अनेक अन्य कारणों से प्रदेश आज लैंटाना जैसे खतरनाक खरपतवार से जूझ रहा है। इससे वनों में विद्यमान चरागाहों तथा स्थानीय लोगों की कृषि एवं बागवानी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। चालू वित्त वर्ष के दौरान 19.29 करोड़ रुपये खर्च कर प्रदेश के 12480 हैक्टेयर क्षेत्र को लैंटाना मुक्त कर ईंधन, चारा प्रजातियां तथा जल संरक्षण द्वारा स्थानीय लोगों व घुमंतू चरवाहों को राहत पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है जबकि गत दो वर्षों में 21.48 करोड़ रुपये खर्च कर 15 हजार हैक्टेयर क्षेत्र को लैंटाना मुक्त किया गया है। सरकार के हरित आवरण बढ़ाने के प्रयासों के अंतर्गत प्रदेश में बाह्य सहायता प्राप्त वानिकी परियोजनाओं को सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। सरकार का प्रयास है कि इन परियोजनाओं का लाभ अधिक से अधिक क्षेत्रों में लम्बे समय तक पहुंचे। इस दिशा में विश्व बैंक की सहायता से मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना की राशि 365 करोड़ से बढ़ाकर 630.76 करोड़ रुपये और अवधि बढ़ाकर 31 मार्च, 2016 तक की गई है। इस परियोजना में 102 नई पंचायतें सम्मिलित कर अब प्रदेश की कुल 710 पंचायतें लाभान्वित हो रही हैं। इस वर्ष इस परियोजना के तहत 60 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे है। प्रदेश सरकार के प्रयासों से हाल ही में जर्मन सरकार व जर्मन विकास बैंक के सहयोग से जिला कांगड़ा और चम्बा के लिए 310 करोड़ रुपये की ‘हि.प्र. फोरेस्ट इको-सिस्टम क्लाईमेट प्रुफिंग परियोजना’ इस वित्त वर्ष से शुरू हो गई है। परियोजना के तहत मिलने वाली दो मिलियन यूरो की ग्रांट के अनुबन्ध पर भी हस्ताक्षर हो गए हैं, जिसे वन अधिकारियों, कर्मचारियों व स्थानीय समुदायों के क्षमता विकास पर खर्च किया जाएगा। इसी प्रकार से प्रदेश सरकार द्वारा जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (श्रप्ब्।) से बाह्य सहायता प्राप्त करने के लिए ‘हि.प्र. फोरेस्ट इको-सिस्टम मनेजमैंट एण्ड लाईवलीहूड परियोजना’ प्रस्तुत की है, जिसके तहत लगभग 1507 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ यह परियोजना प्रदेश के 10 जिलों में कार्यान्वित की जाएगी। प्रदेश सरकार प्रदेश की समृद्ध वन सम्पदा के संरक्षण एवं विकास के प्रति कृतसंकल्प है तथा प्रदेश के प्रत्येक नागरिक को भी वन सम्पदा एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपने सामाजिक दायित्व को निभाना होगा तभी सरकार के इस दिशा में किए जा रहे प्रयास फलीभूत होंगे।

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