हिमाचल प्रदेश प्रमुख रूप से पहाड़ी प्रदेश होने व खड़ी ढ़लानें होने की वजह से यहां वर्षा का जल बिना इस्तेमाल हुए व्यर्थ चला जाता है। इन वजहों से सिंचाई तथा सम्बन्धित गतिविधियों के लिए बड़ी मात्रा में जल संरक्षण की आवश्यकता महसूस की गई हैं। प्रदेश सरकार द्वारा 4751.24 रुपये की अनुमानित लागत से जल संरक्षण के लिए एक दूरदर्शी परियोजना तैयार की गई और इसे 11.5.2018 को केन्द्र को स्वीकृति हेतु भेजा गया था। योजना का निर्माण मुख्य तौर पर किसानों की आय को दोगुना करने की सोच को लेकर किया गया है।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर के अथक प्रयासों से हाल ही में 17 जुलाई, 2018 को भारत सरकार के आर्थिक मामले विभाग (वित्त मंत्रालय) की 85वीं छंटनी कमेटी की बैठक में यह परियोजना स्वीकृत कर दी गई है और 708.87 करोड़ रुपये की किश्त जारी कर दी गई है।
परियोजना की विस्तार से जानकारी देते हुए सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री महेन्द्र सिंह ठाकुर ने कहा कि यह परियोजना पूरे प्रदेश में लागू की जाएगी। हालांकि प्रथम चरण में यह परियोजना जल की कमी वाले चुनिंदा क्षेत्रों, जिनमें मण्डी जिले के धर्मपुर, लड़भड़ोल और थुनाग, हमीरपुर जिले के बमसन और सुजानपुर तथा बिलासपुर जिले के घुमारवीं में 708.87 करोड़ रुपये के विभिन्न जल सरंक्षण कार्य किए जाएंगे। प्रदेश सरकार ने परियोजना के माध्यम से मुख्य तौर से कृषि क्षेत्र में विकास के स्रोतों पर बल दिया है। राज्य में वर्ष 2017 तक 2.691 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधाएं प्रदान की गई हैं जबकि 65885 हेक्टेयर क्षेत्र पर अभी भी सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए परियोजना का एक प्रमुख उद्देश्य जल का अनुकूलतम उपयोग करना है।
मंत्री ने जानकारी दी कि परियोजना के अन्तर्गत ढांचा/मेढबंदी, बेलनाकार ढांचा, खोद कर कुएं बनाना, गाद अवधारण संरचना, चैक डैम, उप-सतह बांध, पुनर्भरण शॉफ्ट तथा रिसाव टैंक बनाए जाएंगे। इसके अतिरिक्त जल के उत्तम इस्तेमाल, समेकित कृषि तथा कृषि विविधिकरण के लिए सिंचाई सुविधाओं के निर्माण पर 377.25 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
परियोजना का मुख्य उद्देश्य प्रमुख फसलों जैसे गेहूं, मकई तथा धान का उत्पादन बढ़ाकर इसे विश्व स्तर की फसल उत्पादकता के बराबर ले जाना हैं
पिछले कुछ दशकों के दौरान जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में, विश्ेषकर जल स्रोतों पर आसानी से देखे जा सकते हैं। प्रदेश में ग्रीन क्लाइमेट फंड के तहत बाह्य एजेंसी से विस्तृत संवेदनशीलता विश्लेषण करवाया गया है तथा प्रस्तावित परियोजना का उद्देश्य वर्षा जल संरक्षण के मुद्दों तथा भू-जल की उपलब्धता को बढाना तथा इसे कृषि तथा बागवानी के लिए उपलब्ध करवाना है।
सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री ने परियोजना की पर और जानकारी देते हुए बताया कि इसका मुख्य उद्देश्य 2022-23 तक किसानों की आय को दोगुना करने के अतिरिक्त जल संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन के लिए कृषि अनुकूलन क्षमता को बढ़ाना है। मिट्टी की उर्वरकता को बनाए रखने के अतिरिक्त वर्षा जल संक्षरण के लिए ढांचों को बनाना तथा जल का अधिकतम इस्तेमाल करने के अतिरिक्त जैव भौतिक पर्यावरण को बहाल करना तथा जल विज्ञान की रूपरेखा को तैयार करना भी परियोजना के मुख्य उद्देश्यों में है। समेकित कृषि के साथ कृषि विविधिकरण को लम्बे समय तक बनाए रखने तथा पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के अतिरिक्त ग्रामीण आबादी की स्थिरता भी आवश्यक है। समेकित कृषि, जल संरक्षण, मृदा संरक्षण तथा कृषि के कायाकल्प और जल स्रोतों के प्रबन्धन को बढ़ावा देना एवं वन तथा कृषि को लम्बे समय तक स्थिरता देना परियोजना के अन्य लक्ष्यों में शामिल हैं।
परियोजना के परिणामों की जानकारी देते हुए मंत्री ने बताया कि 2.5 लाख छोटे व सीमांत किसानों को सुदृढ़ करना तथा हिमाचल में पांच नदियों तक फैली हुई हिमालयी परिस्थितियों को बनाए रखना भी इस योजना का उद्देश्य है। प्रदेश में इस परियोजना के लागू होने के बाद पर्यावरण परिवर्तन तथा जल की कमी को कम किया जा सकेगा।
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