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30th April 2017

हिमाचल का 2023 तक क्षय रोग मुक्त राज्य बनाने का लक्ष्य

क्षयरोग एक बहुत पुरानी बीमारी है, जिसका उपचार आज चिकित्सा विज्ञान के सफल प्रयासों के कारण संभव हो सका है। समय रहते इस बीमारी का पता न चलने पर यह घातक सिद्ध हो सकती है। राष्ट्रीय टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम वर्ष 1962 में आरम्भ किया गया तथा बाद में इसे संशोधित राष्ट्रीय टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम में परिवर्तित किया गया। वर्ष 1995 में हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला से प्रायोगिक परियोजना के तौर पर संशोधित राष्ट्रीय टी.बी. नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) आरम्भ किया गया तथा वर्ष 2002 तक पूरे प्रदेश में इसे लागू किया गया। 
प्रदेश में प्रति वर्ष क्षयरोग के लगभग 15000 नए मामले दर्ज किए जाते हैं, जबकि लगभग 9000 टी.बी. रोगी निजी क्षेत्र से उपचार के लिए आते हैं। यह संतोषजनक बात है कि हिमाचल प्रदेश में टी.बी. के मामलों का पता लगाना तथा उपचार करने की दर राष्ट्रीय दर से काफी बेहतर है। भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक देश को टी.बी. मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है जबकि हिमाचल ने इस लक्ष्य को वर्ष 2023 तक हासिल कर देश का पहला टी.बी. मुक्त राज्य बनाने का लक्ष्य रखा है। 
राज्य सरकार समाज को टी.बी. मुक्त बनाने के लिए पूरी तरह तैयार है। आरएनटीसीपी को समूचे प्रदेश में चरणबद्ध तरीके से लागू किया गया है। इसे प्राथमिकता प्रदान करते हुए राज्य में ‘मुख्यमंत्री क्षयरोग योजना’ की घोषणा की गई है। हमीरपुर से शुरूआत करते हुए कांगड़ा के धर्मशाला तथा मण्डी में 1998 में यह कार्यक्रम लागू किया गया। इसी तरह पहली जुलाई, 2000 से शिमला, सोलन तथा सिरमौर जिलों में सेवाएं आरम्भ की गईं। इन तीन जिलों को सामुहिक रूप से दूसरे चरण में शामिल किया गया। शेष 6 जिलों में से लाहौल-स्पिति, ऊना तथा कुल्लू में वर्ष 2001 की पहली तिमाही तथा बिलासपुर में वर्ष 2001 की दूसरी तिमाही में यह सेवाएं आरम्भ की गई। 
कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदेश में एक टी.बी. अस्पताल, 12 जिला टी.बी. केन्द्र, 72 टी.बी. इकाईयां, 208 माइक्रोस्कोपिक केन्द्रों को क्रियाशील बनाया गया है। 9 जिलों में सीबीएनएएटी मशीनें स्थापित की गई है तथा कुल्लू, रिकांगपिओ, केलांग, रामपुर व पालमपुर के लिए चार अतिरिक्त मशीनें स्वीकृत करवाई गई हैं। प्रदेश ने दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल, नागरिक अस्पताल नूरपुर, पांवटा साहिब तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र नालागढ़ के लिए चार अतिरिक्त मशीनों की मांग की है। 
वर्ष 2017 में आरएनटीसीपी के तहत 11.53 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की गई थी। इस वित्त वर्ष में 5.84 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए, जिसमें से 7.24 करोड़ रुपये व्यय किए गए। वर्तमान वित्त वर्ष के लिए 15.79 करोड़ रुपये की निधि का प्रस्ताव स्वीकृति हेतु भेजा गया है। 
प्रदेश के जिला सोलन में धर्मपुर स्थित टी.बी. अस्पताल बहुत पुराना एवं प्रसिद्ध टी.बी. आरोग्य अस्पताल है। यहां आरएनटीसीपी के कई घटक हैं, जैसे टी.बी. रोगी वार्ड, आईआरएल लैब, राज्य दवाई भण्डारण, टी.बी. प्रशिक्षण केन्द्र तथा डीआरटीबी केन्द्र इत्यादि। राष्ट्रीय दलों ने इस अस्पताल का दौरा करने के उपरान्त इसे ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस’ के तौर पर विकसित करने का सुझाव दिया, जिससे न केवल हिमाचल, बल्कि पड़ोसी राज्यों को भी लाभ होगा। इसके स्तरोन्ययन के लिए 5 करोड़ रुपये की अतिरिक्त निधि की मांग की गई है।
राज्य के सभी अधिकृत माईक्रोस्कोपी केन्द्रों में स्पुटम माईक्रोस्कोपी (थूक की जांच) निःशुल्क की जा रही है। सभी डायरेक्ट ऑबजरवेशन आफ ट्रीटमेंट (डॉट) केन्द्रों में प्रत्येक टी.बी. रोगी को दवाईयों के पूरे कोर्स के लिए गुणात्मक दवाईयां निःशुल्क उपलब्ध करवाई जा रही हैं। रोग का पता लगाने के लिए प्रमाणित लाईन प्रोब ऐसे (एलपीए) लैब तथा इसके बाद की गतिविधियों के लिए प्रमाणित सौलिड कल्चर लैब को आईआरएल धर्मपुर में क्रियाशील बनाया गया है। आईजीएमसी शिमला में लिक्विड कल्चर लैब कार्यशील है।
आरएनटीसीपी के पांच घटकों में राजनैतिक तथा प्रशासनिक प्रतिबद्धता के माध्यम से निधि, पर्याप्त व कुशल कर्मचारी, खरीद तथा सहयोग को सुनिश्चित बनाया गया है। माईक्रोस्कोपी के तहत सभी स्वास्थ्य संस्थानों में रोगियों में क्षय रोग का पता लगाने की क्रिया चल रही है। शॉर्ट कोर्स कीमोथैरेपी (एससीसी) के लिए दवाईयों की निरन्तर आपूर्ति करवाई जा रही है। रोगियों को स्वास्थ्य तंत्र से जुड़े प्रशिक्षित सर्वेक्षकों द्वारा सही समय तथा स्थान पर सुविधाजनक तरीके से डॉट की दवाईयों को सुनिश्चित बनाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, रोगियों में रोग का पता लगाने, उन्हें सही जानकारी देने, उनके स्वास्थ्य की प्रगति को जांचना तथा प्रत्येक रोगी के उपचार के नतीजे पर ध्यान देने के लिए एक गहन प्रणाली विकसित की गई है। 
 
 

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