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23th April 2017

भूमि दस्तावेजों के डिजिटाइजेशन से आम आदमी को बड़ी राहत

प्रदेश में 1,74,295 मुसावियों का डिजिटाइजेशन
हिमाचल प्रदेश में डिजिटल इण्डिया भूमि रिकार्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) का सफल क्रियान्वयन किया गया है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य भू-अभिलेखों का अद्यतन, स्वचालित और स्वतः उत्परिवर्तन इंतकाल इंतकाल, शाब्दिक तथा स्थानिक दस्तावेजों का एकीकरण, राजस्व तथा पंजीकरण के बीच अंतर मिलान से जहां राज्य के आम लोगों को भूमि दस्तावेज प्राप्त करने अथवा इनका अवलोकन करने की एक बड़ी सुविधा प्राप्त हुई है, वहीं उनका बहुमूल्य समय व पैसा दोनों की बचत भी हुई है।
प्रथम चरण में 2008-09 में डिजिटाईजेशन कार्यक्रम के तहत मण्डी, हमीरपुर तथा सिरमौर जिलों का प्रायोगिक आधार पर चयन किया गया था तथा परियोजना के अंतर्गत इन जिलों के लिए 1319.57 लाख रुपये (718.33 लाख रुपये का केन्द्रीय हिस्सा तथा 601.24 लाख रुपये राज्यांश) स्वीकृत किए गए हैं, जिसमें से 1161.23 लाख रुपये व्यय किए जा चुके हैं और अभिलेखों के आधुनिकीकरण का कार्य जारी है। वर्ष 2011-12 के दौरान इस परियोजना के अन्तर्गत कांगड़ा, किन्नौर, शिमला तथा ऊना जिलों को चुना गया। इन जिलों के लिये कुल 2972 लाख रुपये स्वीकृत किए गए, जिसमें केन्द्र की ओर से 2231.77 लाख रुपये तथा राज्य की ओर से 474.27 लाख रुपये स्वीकृत किए गए हैं, और अभी तक 522.03 लाख रुपये व्यय किए जा चुके हैं।
वर्ष 2014-15 के दौरान शेष जिलों-बिलासपुर, चम्बा, कुल्लू, लाहौल-स्पिति तथा सोलन को परियोजना के अन्तर्गत लाया गया, जिसके लिए 19.904 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए। इसमें  जिसमें 11.942 करोड़ रुपये का 60 प्रतिशत केन्द्रीय हिस्सा जबकि 709.45 लाख रुपये की राशि राज्य की ओर से जारी की गई।
बंदोबस्त के अन्तर्गत आने वाले गांवों को छोड़कर प्रदेश के सभी 21392 राजस्व गांवों में पूर्ण रूप से रिकॉर्ड ऑफ राईट (आरओरआर) का डाटा एंट्री कार्य पूरा कर लिया गया है। यह डाटा आम जनमानस के लिए ऑनलाईन उपलब्ध है। राज्य सरकार ने आम लोगों को डिजिटल हस्ताक्षर युक्त आरओरआर की प्रति प्रदान करने के लिए लोक मित्र केन्द्रों को अधिकृत किया है तथा सरकार की ओर से लोकमित्रों द्वारा जारी किए जाने वाले भूमि दस्तावेजों को वैद्यता की मंजूरी प्रदान की गई है। वैब आधारित सरवर पर आरओरआर डाटा के उपलब्ध होने से कोई भी व्यक्ति किसी भी समय इसकी जानकारी प्राप्त कर सकता है।
सभी जिलों में भूकर मानचित्रों का डिजिटाइजेशन आरम्भ कर दिया गया है तथा 12 जिलों में भूकर मानचित्रों के डिजिटलीकरण के लिए तीन सेवा प्रदाता चयनित किए गए हैं। वर्तमान में राज्य में 192049 मुसावियों में से 174295 मुसावियों का डिजिटाइजेशन पूरा कर लिया गया है।
चम्बा, हमीरपुर तथा मण्डी जिलों के डिजिटल भूकर मानचित्र आरओआर के साथ जोड़ दिए गए हैं तथा आम जन की सुविधा के लिए राजस्व विभाग की वैबसाईट पर उपलब्ध हैं। समूचे प्रदेश में जिला, तहसील तथा उपमण्डल स्तरीय कम्पयूटर डाटा केन्द्र स्थापित किए गए हैं।
राज्य डाटा केन्द्र की स्थापना शिमला में प्रौद्योगिकी विभाग के राज्य मुख्यालय में की गई है तथा राज्य डाटा केन्द्रों में सरवर पर आरओआर का कम्पयूटराईज डाटा उपलब्ध है तथा हर समय लोगों की सुविधा के लिएआरओआर का डाटा तहसील आधारित क्लाइंट सरवर से राज्य डाटा केन्द्र के वैब आधारित सरवर पर स्थानांतरित किया गया है। राजस्व अधिकारियों तथा उप-पंजीयकों के कार्यालय भी आपस में जुड़े हैं। 
सभी तहसीलों में पंजीकरण प्रणाली का कम्प्यूट्रीकरण कार्य भी पूर्ण कर लिया गया है तथा समूचे प्रदेश में पंजीकरण का कार्य आरओआर के साथ जोड़ा गया है। संबंधित जिलाधीशों द्वारा राजस्व विभाग की वैबसाईट पर निर्धारित की गई वृत दरों के अनुसार भूमि के मूल्य की जानकारी भी उपलब्ध करवाई गई है। इसी तरह कम्पयूटरों के माध्यम से विरासत भार की डाटा एंट्री भी बनाई जा रही है। पुराने दस्तावेजों की स्कैनिंग तथा संरक्षण का कार्य जारी है। सभी जिलों में रिकार्ड कक्षों के आधुनिकीकरण का कार्य भी प्रगति पर है।
 
 
 

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