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19th February 2017

वनीकरण में जन-सहभागिता के लिए ‘स्मृति वन योजना’ का सफल क्रियान्वयन

वनों को आग से बचाने के लिये राज्य में 103 वाच टावर स्थापित

पेड़ पौधे पृथ्वी के आभूषण हैं। ये हमें जीवनदायनी ऑक्सीजन के साथ-साथ फूल-पत्ते, इमारती व बालन लकड़ी के अलावा अन्य बेसुमार जड़ी-बूटियां प्रदान करते हैं। वन हमारे पर्यावरण को न केवल शुद्ध करते हैं, बल्कि जीवन के लिए उपयोगी प्राणवायु भी उपलब्ध करवाते हैं। वनों के महत्व के दृष्टिगत सरकार प्रदेश के अधिक से अधिक भू-भाग को हरित आवरण के अंतर्गत लाने के लिये प्रयासरत है।

इन्हीं प्रयासों के चलते वनीकरण कार्यक्रमों में लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने तथा पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने के उद्देश से राज्य सरकार ने इस वर्ष प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में स्मृति वन योजनाशुरू की गई है। योजना के अन्तर्गत लोगों द्वारा अपने जन्मदिन, महत्वपूर्ण कार्यों जैसे सालगिरह, अपने प्रियजनों की पुन्यतिथि आदि महत्वपूर्ण अवसरों पर पौधरोपण किए जाने का प्रावधान किया है। इस मुहिम का उद्देश्य वन क्षेत्र में वृद्धि कर पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना है। आगामी वर्ष से यह योजना प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी शुरू की जायेगी। योजना के तहत पौधे वन विभाग द्वारा प्रदान किए जा रहे हैं।

 पौधरोपण के लिए बेहतर किस्म की नर्सरियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार ने सत्ता में आते ही बन्द पड़ी सभी नर्सरियों को पुनःस्थापित किया। इससे पौधरोपण वाले स्थलों के समीप स्थानीय स्तर पर नर्सरियों में पौधे तैयार किये जा रहे हैं। पौधों की जीवित प्रतिशतता बढ़ाने के लिए पौधरोपण के रख-रखाव की अवधि तीन वर्ष से बढ़ाकर पांच वर्ष तथा कैम्पा के तहत पांच वर्ष से सात वर्ष की गई है, साथ ही आर.सी.सी. फैंसिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि इस प्रयोजन हेतु वनों का कटान न हो। प्रदेश को लैंटाना जैसे खतरनाक खरपतवार से निजात दिलाने के लिए गत चार वर्षों में 56.84 करोड़ रुपये व्यय कर 41,060 हैक्टेयर क्षेत्र को लैंटाना मुक्त कर ईंधन, चारा प्रजातियों तथा जल संरक्षण जैसे कार्य कर स्थानीय लोगों व घुमंतु चरवाहों को राहत पहुंचाई गई है।

सरकार के हरित आवरण बढ़ाने के प्रयासों के अंतर्गत प्रदेश में विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत गत चार वर्षों के दौरान लगभग 48,000 हैक्टेयर क्षेत्र में 5.50 करोड़ से अधिक पौधारोपण किया गया। पौधरोपण कार्यक्रम में चौड़ी पत्ती, जंगली फलदार व औषधीय प्रजातियों पर बल दिया जा रहा है ताकि ग्रामीणों को पशुचारे के साथ-साथ जंगली फल व औषधी जैसी वन सम्पदा से सम्बन्धित स्वरोज़गार भी प्राप्त हो सकें। इसी अवधि के दौरान विभिन्न योजनाओं के तहत लगभग 1.35 करोड़ औषधीय पौधे भी रोपे गए हैं। सरकार के इन्हीं प्रयासों के चलते भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान, देहरादून द्वारा जारी वर्ष 2015 की इंडिया स्टेट आफ फॉरेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल में वनों के कुशल संरक्षण व प्रबन्धन के परिणामस्वरुप प्रदेश के वन क्षेत्र में 13 वर्ग कि.मी. की सराहनीय वृद्वि दर्ज की गई है।

राज्य सरकार ने हाल ही में जन-जातीय क्षेत्रों में नौतोड़ नियम व आवश्यक विकासात्मक कार्यों के लिए जनजातीय क्षेत्रों में वन अधिनियम 1980 में दो वर्ष की छूट प्रदान कर इन क्षेत्रों में विकासात्मक कार्यों को एक नई दिशा देने का प्रयास किया है। इस छूट के तहत चिन्हित कार्यों की अनुमति अब राज्य सरकार द्वारा प्रदान की जा सकेगी।

सरकार द्वारा वानिकी क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों को पुरस्कृत करने के लिए एक कार्य-योजना तैयार की जा रही है ताकि अधिकारियों व कर्मचारियों की दक्षता बढ़े और पर्यावरण संरक्षण भी सुनिश्चित हो। वन विभाग की जिन परिक्षेत्रों में आगजनी की घटना नहीं होती है उनमें सम्बन्धित वन रक्षकों को उचित पुरस्कार प्रदान करने के साथ-साथ उनकी समय पूर्व पदोन्नति पर विचार किया जा रहा है। विभिन्न वानिकी क्षेत्रों जैसे अवैध कटान, लकडी चोरी, वन माफिया को पकड़ना, वन संरक्षण आदि क्षेत्रों में वन रक्षकों की बिना बारी पदोन्नति के लिए 3 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान पर विचार किया जा रहा है। वन मण्डल स्तर पर भी अगर किसी वन मण्डल में आगजनी एवं वन माफिया की कोई घटना नहीं होती है तो सम्बन्धित वनमण्डल अधिकारी, सहायक अरण्यापाल, परिक्षेत्राधिकारी एवं अरण्यपाल को और अगर वन वृत स्तर पर कोई घटना नहीं होती तो सम्बन्धित अरण्यापाल को भी उचित पुरस्कार देकर प्रोत्साहित करने का प्रावधान किया जा रहा है।

गर्मियों के दौरान वनों में होने वाली आगजनी की घटनाओं पर नजर रखने के लिए सैटेलाईट ट्रैकिंग सिस्टम कार्यान्वित किया जा रहा है, जिससे प्रदेश की बहुमूल्य वन सम्पदा को आग से बचाने में काफी मद्द मिलती है साथ ही वन अग्नि की रोकथाम में स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करने व उन्हें आय का अतिरिक्त विकल्प उपलब्ध करवाने हेतु चीड़ की पत्तियों, जिनसे आग बहुत तेजी से फैलती है, को स्थानीय लोगों द्वारा एकत्र करवा कर विभिन्न औद्योगिक कम्पनियों को बेचने पर बल दिया जा रहा है। औद्योगिक कम्पनियों में चीड़ पत्ति आधारित विभिन्न उत्पाद तैयार करने के साथ-साथ कई अन्य प्रयोजनों के लिए इन पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।

इसके अतिरिक्त, वनों को आग से बचाने के लिए प्रदेश में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, जिसके तहत लोगों की 693 सहभागिता समितियां बनाई गई हैं। इस दिशा में बेहतर कार्य करने वालों को पुरस्कृत किया जा रहा है। इन समितियों को प्रोत्साहन स्वरूप दी जाने वाली पुरस्कार राशि को 5000 रुपये से बढ़ाकर 10 हजार रुपये प्रति समिति किया गया है। प्रदेश में वनों की आग पर नजर रखने के लिए 103 वाच टावर भी स्थापित किए गए हैं। इनके माध्यम से आग की घटनाओं की सूचना देने के लिए स्थानीय वाचर दैनिक भोगी के रूप में तैनात किए गए हैं। इसके अतिरिक्त, वनों की आग बुझाने के लिए पानी के 86 भण्डारण टैंक भी बनाए गए हैं। वनों की आग बुझाने के लिए फायर लाईन, कन्ट्रोल्ड बर्निंग, अत्याधिक आग संभावित क्षेत्रों की पहचान तथा आग नियंत्रण दलों का गठन इत्यादि उपायों का प्रयोग भी किया जा रहा।

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