हिमाचल में कमज़ोर वर्गों को मिल रही है सुगम विधिक सेवाएं
ऽ लोक अदालतों के माध्यम से 2.65 लाख मामलों का निपटारा
ऽ विधिक सेवा क्लिनिकों के माध्यम से ग्रामीणों को बहुमूल्य सेवाएं
हि.प्र. राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण, जिसका गठन वर्ष 1995 में किया गया था, राज्य मेें समाज के कमजोर वर्गों को निःशुल्क एवं समर्थ विधिक सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा है। इसके अभाव में इन वर्गों को विधिक प्रतिनिधित्व तथा न्याय पहुंच शायद ही पूरी तरह मुमकिन हो पाती। यह भी सुनिश्चित बनाया जा रहा है कि कोई भी नागरिक आर्थिक एवं अन्य अक्षमताओं के कारण न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न रह पाए। प्राधिकरण समान अवसरों के आधार पर न्याय प्रदान करने के लिए विधिक प्रणाली के संचालन के लिए लोक अदालतों का आयोजन कर रहा है।
लोक अदालतों का आयोजन प्राधिकरण का मुख्य कार्य है। इनका आयोजन उच्च न्यायलय से लेकर उपमण्डल स्तर तक राज्य के 109 न्यायालयों में किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, राज्य में समय-समय पर मुकदमों से पूर्व के मामलों में राष्ट्रीय लोक अदालतों तथा लोक अदालतों का आयोजन भी किया जा रहा है।
राज्य में दिसम्बर, 2013 से अगस्त, 2016 तक लगभग 4 लाख मामले लोक अदालतों के समक्ष प्रस्तुत किए गए, जिनमें से 2,64,748 मामलों का निपटारा 3799 लोक अदालतों में किया गया। धर्मशाला, मण्डी, शिमला तथा ऊना में स्थाई लोक अदालतों का गठन किया गया है, और राज्य में सचल लोक अदालतों का आयोजन भी किया जा रहा है, जिनके माध्यम से अनेकों मामलों के निपटारे में मदद मिली है।
विधिक सहायता उन लोगों को प्रदान की जा रही है, जो विधिक प्रतिनिधित्व एवं न्यायपालिका प्रणाली की पहुंच को प्राप्त करने में असमर्थ हंै। अप्रैल, 2015 मार्च 2016 के बीच विधिक सेवा के माध्यम से 1611 लोगों को लाभान्वित किया गया है। विधिक साक्षरता शिविरों का आयोजन भी प्राधिकरण की गतिविधियों में शामिल हैं। लोगों में विधिक जागरूकता उत्पन्न करने के उद्देश्य से इन शिविरों का आयोजन दूरवर्ती क्षेत्रों, औद्योगिक क्षेत्रों, अस्पतालों, मेलों, कारागारों तथा ग्राम पंचायतों में किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक लोग विधिक सहायता प्राप्त करने के लिए आगे आएं।
निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करने के लिए उपमण्डल, ज़िला तथा उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति स्तर पर कानूनविदों के पैनल बनाए गए हैं। वर्तमान में इसके लिए राज्य में 956 अधिवक्ताओं की नियुक्ति की गई है।
विधिक सेवाओं की लोगों तक सुगमता से पहुंच सुनिश्चित बनाने के लिए राज्य की 2628 ग्राम पंचायतों में विधिक सहायता क्लिनिक (ग्राम विधिक देखभाल एवं सहयोग केन्द्र) खोले गए हैं। इन केन्द्रों को रिटेनर अधिवक्ताओं तथा पैरा विधिक स्वयं सेवियों द्वारा संचालित किया जा रहा है। इन स्वयं सेविओं को चरणबद्ध तरीके से प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है। इन केन्द्रों में विधिक सलाह के अतिरिक्त अन्य सेवाएं जैसे जाॅब कार्ड के लिए प्रार्थना पत्र तैयार करना, मनरेगा योजना के अन्तर्गत जागरूकता, ग्राम वासियों को याचिका के प्रारूप तैयार करने में सहायता प्रतिवेदन तथा सरकार की विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत लाभों को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना पत्रों को भरने आदि जैसी सुविधाएं प्रदान की जा रही है।
विधिक साक्षरता शिविरों के माध्यम से प्रदेश के प्रत्येक कौने में विधिक जागरूकता फैलाई जा रही है। शिविरों में घरेलु हिंसा, महिलाओं एवं बच्चों के साथ यौन शोषण, किशोर न्याय, लिंग भेदभाव, कार्य स्थल पर यौन शोषण, वरिष्ठ नागरिकों व अभिभावकों की सुरक्षा व देखभाल, बाल विवाह अधिनियम, दहेज, गरीबी उन्मूलन योजनाएं, मध्यस्थता एवं उपभोक्ता अधिकारों बारे जागरूक किया जा रहा है।
प्राधिकरण द्वारा नौवीं से ग्यारहवीं स्तर के विद्यार्थियों को भारत के संविधान के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करवाने के लिए हिन्दी तथा अंग्रेजी में चार पुस्तकें भी प्रकाशित की गई हैं। इन पुस्तकों में विशेषकर मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य, न्यायिक प्रणाली व वैकल्पिक विवादों को सुलझाने इत्यादि की जानकारी दी गई है। तीव्रता से न्याय उपलब्ध करवाने के उददेश्य से प्रदेश में वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) स्थापित किए गए हैं। बिलासपुर, हमीरपुर, धर्मशाला, रिकांगपिओ, शिमला तथा ऊना जिले मेें एडीआर केन्द्रों का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
प्रदेश सरकार द्वारा सिविल तथा अपराधिक मामलों के लिए भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत छोटे मामलों को निपटाने के लिए पंचायतों को शक्तियां प्रदान की गई हैं।
प्रदेश के सभी जिलों व उप-कारागारों में विधिक सेवाएं क्लिनिक स्थापित किए गए हैं जो पैरा लिगल कार्यकर्ताओं व रिटेनर अधिवक्ताओं द्वारा चलाए जा रहे हैं। उत्तरी पूर्वी विद्यार्थियों के लिए सोलन, हमीरपुर तथा धर्मशाला में विशेष प्रकोष्ठ स्थापित किए गए हैं।