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17th April 2016

सरकार बंदरों की समस्या से निजात दिलाने के लिए कृतसंकल्प

 
प्रदेश में गत दो वर्षों में बंदरों की संख्या में दर्ज की गई 18,500 कमी
 
प्रदेश सरकार किसानों को बंदर समस्या से निजात दिलाने के लिए कृतसंकल्प है और इस दिशा में हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। इन्हीं प्रयासों के चलते प्रदेश में किसानों की फसलों को बन्दरों, आवारा पशुओं तथा जंगली जानवरों से बचाने के लिए  25 करोड़ रुवश्े की मुख्यमंत्री खेत संरक्षण योजना इस वित्त वर्ष से  प्रदेश में आरम्भ की गई है, जिसके तहत किसानों को अपने खेतों में बाड़ लगाने के लिए 60 प्रतिशत वित्तीय सहायता का प्रावधान किया गया है।
किसानों को बंदरों की समस्या से निजात दिलाने के उपायों के तहत प्रदेश में 8 नसबंदी केंद्र स्थापित किए गए हैं, जिनमें अभी तक एक लाख से अधिक बंदरों की नसबंदी की जा चुकी है। इस कार्य में तेजी लाने के लिए प्रदेश में एक और नया नसबंदी केन्द्र शिमला जिला के तहत कानिया नाला (सैंज) में शीघ्र ही स्थापित किया जाएगा। नसबंदी किए गए बंदरों के पुनर्वास के लिए वन वाटिकाएं स्थापित करने की कार्य-योजना तैयार की गई है, जिसके तहत आरम्भ में चिंतपूर्णी व पाॅवंटा साहिब में एक-एक वन वाटिका बनाई जाएगी तथा बाद में इन वन वाटिकाओं की सफलता के पश्चात् अन्य उपयुक्त स्थानों पर इस प्रकार की वन वाटिकाएं बनाने पर विचार किया जाएगा।
सरकार के इन्हीं प्रयासों के चलते प्रदेश में गत् दो वर्षांे के दौरान लगभग 18,500 बंदरों की संख्या में कमी दर्ज की गई है। यह खुलासा हाल ही में प्रदेश में बंदरों की संख्या की स्थिति को लेकर मैसूर विश्वविद्यालय द्वारा प्रदेश के वन मंत्री को सौंपी गई रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 में हैड काऊंट मैथड (भ्मंक ब्वनदज डमजीवक) द्वारा की गई बंदरों की गिनती के अनुसार प्रदेश में बन्दरों की संख्या 2,26,086 आंकी गई थी जोकि सरकार के प्रयासों के चलते वर्ष 2015 में घटकर 2,07,614 हो गई है। पिछले एक दशक से प्रदेश में बंदरों की संख्या में कमी दर्ज की गई। वर्ष 2004 के आंकलन के अनुसार प्रदेश में बंदरों की संख्या 3,17,512 थी।
रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में घटती बंदरों की संख्या का मुख्य कारण नसबंदी माना गया है, जिसे भविष्य में भी जारी रखने का सुझाव दिया गया है। रिपोर्ट के तहत प्रदेश में 27,276 कि.मी. क्षेत्र बदरों के रहने के अनुकूल है। अधिकतर वन मण्डलों में बंदरों की संख्या में कमी आई है, लेकिन नूरपूर, रेणूकाजी, बिलासपुर, रोहड़ू, धर्मशाला, पांगी व डलहौजी वन मण्डलों में वानर संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है। यह मण्डल या तो प्रदेश के उतर-पश्चिम या दक्षीण-पूर्व सीमाओं पर स्थित हैं। रिपोर्ट में वन वृतों व वन मण्डलों की अधिक संख्या वाले बीट के बारे में भी उल्लेख किया गया है। कुल 348 बीटों को हाॅटस्पोट बीट के रूप में माना गया है, जोकि 83 वन परिक्षेत्रों में हैं।
रिपोर्ट के तहत वानरों की संख्या का आंकलन पथ सर्वेक्षण प्रणाली (ज्तंपस ैनतअमल नेपदह जतंदेंबज डमजीवक) एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली (ळमवहतंचीपबंस प्दवितउंजपवद ैलेजमउ) के द्वारा किया गया है। सर्वेक्षण कर्मचारियों द्वारा पूरे प्रदेश में जून से जुलाई, 2015 तक 2631 पथों के 12,782 कि.मी. रास्तों पर किया गया है तथा इसमें वातावरण व ऊँचाई आदि के 22 मानकों का अध्ययन भी किया गया है। इन मानकों के आधार पर तथा वैज्ञानिक आंकलन विधि द्वारा वानरों की गणना की गई है। इसी के चलते हिमाचल प्रदेश इस तरह के आंकलन में देश का पहला राज्य बन गया है।
यही नहीं वानरों द्वारा मनुष्यों पर हमलों की घटनाओं में भी कमी आई है। सरकार वानर समस्या के प्रति गम्भीर है तथा प्रभावित व्यक्तियों को क्षति के अनुसार मुआवजा भी दिया जा रहा है तथा वर्तमान सरकार द्वारा इसके तहत मिलने वाले मुआवजे में समुचित बढ़ौतरी की गई है। जंगली जानवरों के कारण मानव मृत्यु पर मुआवजा एक लाख रुपये से बढ़ाकर एक लाख 50 हजार रुपये किया गया है जबकि गम्भीर चोट में यह राशि 33 हजार रुपये से बढ़ाकर 75 हजार तथा साधारण चोेट में 5 हजार से बढ़ाकर 10 हजार की गई है। अब तक सरकार 2200 मामलों में लगभग एक करोड़ रुपये का मुआवजा प्रभावितों को प्रदान कर चुकी है।
 
 
 
 
 

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