राज्य सरकार द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे मध्य हिमालय जलागम परियोजना प्राक्रृतिक संसाधनों एवं भूमि कटाव के सरंक्षण में सहायक सिद्ध होने के अतिरिक्त परियोजना से कार्यान्वयन क्षेत्र के लोगों की आजीविका में व्यापक बदलाव आया है।
मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना अक्तूबर, 2005 से विश्व बैंक के सहयोग से प्रदेश के 2 जन-जातीय जिलों किन्नौर और लाहुल-स्पिति को छोड़कर अन्य सभी 10 जिलों के 42 विकास खण्डों की 602 ग्राम पंचायतों में कार्यान्वित की जा रही थी। इस परियोजना के सकारात्मक परिणामों को देखते हुए इन्हीं 10 जिलों की ऐसी ग्राम पंचायतें जो अति लघु जलागम कार्यक्रम के तहत तो थीं परन्तु इस परियोजना के अंतर्गत नहीं आती थीं, ऐसी पंचायतों में व्यापक जलागम उपचार तथा चकबन्दी द्वारा प्रभावी स्त्रोतों को बनाए रखने व इस परियोजना के तहत लाने के लिए वर्ष 2012 के अन्त में विश्व बैंक से अतिरिक्त सहायता प्राप्त की गई। जिसके चलते 10 जिलों के 3 और विकास खण्डों की 108 अतिरिक्त ग्राम पंचायतें इस परियोजना में सम्मिलित की गई और परियोजना राशि 395 करोड़ रुपये से बढ़कर 630.75 करोड़ रुपये की गई है। परियोजना की अवधि आरम्भ में वर्ष 2013 तक थी, उसे बढ़ाकर अब मार्च, 2016 तक कर दिया गया है।
मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना के कार्यान्वयन के परिणाम अत्यन्त सार्थक व अर्थपूर्ण रहे हैं और इसके तहत निर्धारित सभी लक्ष्य हासिल कर लिए गए हैं। प्राकृतिक संसाधन प्रदेश की बहुमूल्य धरोहर है। इन धरोहरों को संभाल कर रखने के लिए परियोजना के तहत 4932 उपयोक्ता समूह बनाए गए थे, जिन्होंने प्राकृतिक संसाधनों के साथ तालमेल बिठाकर अपने दायित्व को बखूवी निभाया और प्रदेश के विकास को एक नई दिशा देने का प्रयास किया गया। योजना के कार्यन्वयन के दौरान उपलब्ध 70 प्रतिशत बंजर भूमि में पौधरोपण कर हरित आवरण वृद्धि व पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
हिमाचल एक कृषि प्रधान प्रदेश है और लोगों की आय का मुख्य साधन कृषि उपज व इससे सम्बद्ध गतिविधियां हैं, लेकिन प्रदेश में अधिकतर कृषि वर्षा पर निर्भर है। परियोजना कार्यान्वयन के दौरान सिंचाई संसाधनों के निर्माण व प्राकृतिक जल स्त्रोतों के संरक्षण एवं संवर्द्धन को विशेष अधिमान दिया गया है। इस दौरान 10.78 लाख क्यूविक मीटर क्षमता के कुल 8961 जलसंग्रहण ढांचों का निर्माण किया गया तथा 241 किलोमीटर लम्बी सिंचाई कूहलें बनाई गईं। इसी तरह से परियोजना कार्यान्वयन के समस्त जिलों में जलागम मूल्यों से जल की उपलब्धता बढ़ाने के लिए गम्भीर प्रयास किए गए हैं। इन्हीं प्रयासों के चलते प्रदेश में कृषि विविधिकरण क्रांति का सूत्रपात संभव हुआ, जिससे नकदी फसलों से किसानों, बागवानों एवं ग्रामीणों की आय में आशातीत वृद्धि होने से उनके जीवन स्तर में बेहतरी एवं खुशहाली आई है।
इस दौरान 33 हजार मीट्रिक टन वर्मी-कम्पोस्ट खाद तैयार की गई और इसी दौरान बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि बनाने के प्रयासों के परिणाम-स्वरूप गेहूं के उत्पादन में 14, मक्की के उत्पादन में 13 और दूध के उत्पादन में 11.55 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई है। 32 से अधिक आजीविका गतिविधियांे का कार्यान्वयन इस दौरान 4174 सामान्य रूचि के समूहों द्वारा किया गया। इन्हीं समस्त प्रयासों के चलते प्रदेश में आज प्रतिव्यक्ति आय में 93 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
हिमाचल विशिष्ट हिमालयी जैव-विविधता को संजोए हुए एक समृद्ध प्रदेश है। इसे बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि यहां उपलब्ध जीवनोपयोगी प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग सोच-समझ कर, किफायत व वैज्ञानिक ढंग से किया जाए। प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक संसाधनों के संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिए सदैव ही गम्भीर प्रयास किए हैं। इन्हीं प्रयासों में एक प्रयास सरकार द्वारा प्रदेश में मध्य हिमालय जलागम परियोजना का कार्यान्वयन भी है। यह परियोजना प्रदेश के विलुप्त हो रहे प्राकृतिक संसाधनों की
प्रक्रिया को बदलने, प्राकृतिक संसाधनों की उत्पादक क्षमता में सुधार, भूमि कटाव संरक्षण तथा परियोजना कार्यान्वयन क्षेत्रों में रह रहे ग्रामीणों की आय वृद्धि में अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई है। यह परियोजना पर्यावरण संरक्षण की प्रहरी बन कर उभरी है।
क्लीन डवैलपमैट मैकेनिज़म (सी.डी.एम.) बायो-कार्बन परियोजना जोकि मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना की उपयोजना है, को प्रदेश वन विभाग, स्थानीय पंचायतों और विश्व बैंक के आपसी विचार-विमर्श के उपरान्त चार निर्देशक सिद्धांतों के साथ 177 पंचायतों के कुल 4003.07 हैक्टेयर क्षेत्र में कार्यान्वित किया जा रहा है। इसमें वन भूमि 3176.86 हैक्टेयर, सामुदायिक भूमि 293.06 हैक्टेयर व निजी भूमि 533.15 हैक्टेयर है। इस उप-योजना के तहत कम उपजाऊ भूमि पर वनीकरण का विस्तार किया गया है ताकि वातावरण में मौजूद ग्रीन हाऊस गैस को सोखकर कार्बन राजस्व सिंक बन सके। परियोजना से निर्धन किसानों को कार्बन राजस्व के साथ-साथ अनेक प्रकार के लाभ जैसे ईमारती लकड़ी, ईंधन, लघु वन उपज आदि प्राप्त हो रहे हैं।
वर्ष 2013-14 तक इस उप-परियोजना के अंतर्गत 3219 हैक्टेयर क्षेत्र को पौधरोपण के अंतर्गत लाया जा चुका है। इस बायो-कार्बन पौधरोपण का सत्यापन स्वतन्त्र सत्यापन पार्टी द्वारा करके इसकी रिपोर्ट भेजी जा चुकी है, जिसे यूनाइटिड नेशन फ्रेमवर्क आॅन क्लाईमेट चेंज (यू,एन.एफ.सी.सी.सी.) द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। इसके एवज् में 1.63 करोड़ रुपये का कार्बन राजस्व प्रदेश को प्राप्त हुआ है। इस कार्बन राजस्व को आगे मण्डलीय जलागम विकास अधिकारियों को स्थानान्तरित कर दिया गया है जिसे परियोजना के अनुबन्ध के अनुसार पंचायतों एवं लाभार्थियों में बांटा जाएगा।
सी.डी.एम. परियोजना कार्बन राजस्व प्राप्त करने के साथ भूमि कटाव एवं क्षरण की शिकार अतिसंवेदनशील ढलान वाली भूमि का सुधार संभव हुआ है। परियोजना की गतिविधियों से जैव-विविधता को बढ़ावा मिला है। वृक्षारोपण द्वारा स्थानीय समुदायों के लिए कई तरह के उत्पाद प्राप्त हुए हैं जिससे रोज़गार एवं आजीविका के लिए कई गतिविधियों को बढ़ावा मिला है।
हाल ही में प्रदेश सरकार द्वारा इस परियोजना की अवधि को एक और वर्ष अर्थात् 31 मार्च, 2017 तक बढ़ाने का मामला केंन्द्र सरकार को भेजा गया था, जिसे स्वीकृत कर दिया गया है। परियोजना अवधि बढ़ने से इसके तहत शेष बची 70 करोड़ रुपये की राशि को खर्च करने का अतिरिक्त समय मिला है, जिससे प्रदेश में विकासात्मक कार्यों को और गति मिलेगी।
परियोजना के कार्बन क्रेडिट का समय 20 वर्ष के भुगतान चक्र से शुरू होता है। मध्य हिमालय जलागम विकास परियोजना की अवधि मार्च, 2017 को समाप्त होने की स्थिति में बायो-कार्बन सैल प्रदेश वन विभाग को स्थानान्तरित कर दिया जाएगा जो परियोजना समय के बाद भी कार्बन राजस्व का भुगतान स्थानीय पंचायतों व लाभार्थियों को मिलता रहेगा।