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30th June 2014

सेब आर्थिकी को सुदृढ़ करने के लिये प्रदेश सरकार प्रतिबद्ध

क्ृप्या 30 जून, 2014 से पूर्व प्रकाशित न करें प्रदेश की आर्थिकी में सेब के महत्त्वपूर्ण योगदान के दृष्टिगत, वर्तमान प्रदेश सरकार सेब उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये बागवानों को सेब की उच्च उत्पादन क्षमता वाली किस्में उपलब्ध करवाई जा रही हैं तथा बागवानों की सक्रिय भागीदारी से विपणन नेटवर्क को सुदृढ़ किया जा रहा है। निःसन्देह, प्रदेश की समद्धि में सेब का विशिष्ट योगदान है और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में सेब 3200 करोड़ रूपये का योगदान दे रहा है। हिमाचल को देश के सेब राज्य के रूप में जाना जाता है तथा सेब प्रदेश की मुख्य फल फसल हैै। राज्य में कुल फल क्षेत्र के 49 प्रतिशत पर सेब का उत्पादन किया जाता है तथा कुल फल उत्पादन का 87 प्रतिशत सेब है। वर्ष 1950-51 में सेब के अधीन कुल क्षेत्र 400 हैक्टेयर था, जो वर्ष 1960-61 में बढ़ कर 3025 हैक्टेयर तथा वर्ष 2012-13 में बढ़कर 1,06,440 हैक्टेयर हो गया। हिमाचल में सेब का व्यावसायिक उत्पादन लगभग 80-90 वर्ष पूर्व आरम्भ हुआ, जब संयुक्त राज्य अमेरिका के फिलाडेल्फिया के श्री सत्या नंद स्टोक्स ने वर्ष 1918 में शिमला जिले के कोटगढ़ में सेब की लोकप्रिय ‘डिलीशियस’ किस्मों से क्षेत्रवासियों को अवगत करवाया। सेब किसानों विशेषकर छोटे एवं सीमान्त किसानों की आजीविका का मुख्य साधन बनकर उभरा है।शिमला, कुल्लू, किन्नौर, चम्बा, मण्डी और सिरमौर जिले प्रदेश के मुख्य सेब उत्पादक जिले हैं। गत कुछ वर्षों में प्रदेश के उंचाई वाले क्षेत्रों के साथ-साथ निचले क्षेत्रों में भी सेब उत्पादन की दिशा में रूचि उत्पन्न हुई है। यह राज्य के बागवानी वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे सघन अनुंसधान और निचले क्षेत्रों के बागवानों को प्रगतिशील बागवानों के सेब उत्पादन के क्षेत्र में किये गये सफल प्रयोगों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने के प्रोत्साहन से ही सम्भव हुआ है। प्रदेश सरकार भी किसानोें को आधुनिक तकनीक अपनाकर फसल विविधीकरण एवं सेब तथा अन्य फलों की उच्च क्षमता युक्त किस्मों उत्पादन के लिये प्रोत्साहित कर रही है ताकि उनकी आर्थिकी को मज़बूत बनाया जा सके। वर्ष 2003-04 में जहां सेब के अधीन क्षेत्र 84112 हैक्टेयर था, वहीं वर्ष 2004-05 में यह बढ़कर 86202 हैक्टेयर, वर्ष 2005-06 में बढ़कर 88507 हैक्टेयर, वर्ष 2006-07 में बढ़ कर 91804 हैक्टेयर, वर्ष 2007-08 में बढ़ कर 94726 हैक्टेयर, वर्ष 2008-09 में बढ़ कर 97438 हैक्टेयर, वर्ष 2009-10 में बढ़ कर 99564 हैक्टेयर, वर्ष 2010-11 में बढ़ कर 103644 हैक्टेयर और वर्ष 2011-12 में बढ़ कर 103644 हैक्टेयर हो गया। प्रदेश में सेब उत्पादन जहां वर्ष 2003-04 में 459492 मीट्रिक टन था, वहीं वर्ष 2004-05 में यह बढ़कर 527601 मीट्रिक टन, वर्ष 2005-06 में 540356 मीट्रिक टन, वर्ष 2006-07 में 268402 मीट्रिक टन, वर्ष 2007-08 में 592576 मीट्रिक टन, वर्ष 2008-09 में 510161 मीट्रिक टन, वर्ष 2009-10 में 280105 मीट्रिक टन, वर्ष 2010-11 में 892112 मीट्रिक टन तथा वर्ष 2011-12 में 275036 मीट्रिक टन रहा। गुणवत्ता युक्त सेब का उत्पादन उन क्षेत्रों में संभव है जो समुद्र तल से 1800 से 2700 मीटर की उंचाई पर स्थित हों, जहो सर्दी के मौसम में 1000 से 1600 तक ‘चिलिंग आवर्स’ प्राप्त हों और जहां सेब सीज़न में तापमान 21 से 24 डिग्री सैल्सियस तक रहता हो। प्रदेश में सेब उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देशय से ‘एप्पल रिजुविनेशन परियोजना’ के दिशा-निर्देशों का सरलीकरण किया गया है ताकि अधिक से अधिक बागवान इससे लाभान्वित हो सकें। यह परियोजना राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत कार्यन्वित की जा रही है। इस योजना के अन्तर्गत सेब के पुराने पौधों के स्थान पर नई, उन्नत स्पर किस्में लगाई जा रही हैं। वर्ष 2014-15 में नवीन ‘एप्पल रिजुविनेशन परियोजना’ के अधीन 1500 हैक्टेयर क्षेत्र लाया जा रहा है। योजना के अन्तर्गत लाये गये बागीचों में आवश्यक रूप से 30 प्रतिशत पाॅलीनाईज़र तथा सूक्ष्म सिंचाई सुविधाएं सुनिश्चित बनाईं जायेंगी। वर्ष 2014-15 में सूक्ष्म सिंचाई के अधीन 1000 हैक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र लाया जा रहा है। फल, विशेषकर सेब की फसल को ओलों से बचाने के लिये प्रदेश सरकार ने एंटी हेल नेट पर उपदान को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 80 प्रतिशत कर दिया हैै। इसमें से 30 प्रतिशत प्रदेश सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है। वर्ष 2013 से मई 2014 तक 23.5 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र को एंटी हेल नेट के अधीन लाया गया। वर्ष 2014-15 में 15 लाख वर्ग मीटर अतिरिक्त क्षेत्र को एंटी हेल नेट के अधीन लाया जा रहा है, ताकि बागवानों को उत्तम गुणवत्ता के एंटी हेल नेट उपलब्ध करवाकर उनकी फसल को सुरक्षित रखा जा सके। बगवानों को सेब की फसल के समुचित दाम सुनिश्चित बनाने के लिये वर्ष 2013-14 में मण्डी मध्यस्थता योजना के तहत 34229 मीट्रिक टन ‘सी’ ग्रेड के सेब का प्रापण किया गया। गत वर्ष की तुलना में मण्डी मध्यस्थता योजना के तहत सेब के प्रापण मूल्य में 50 पैसे प्रति किलो की वृद्धि की गई।

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