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2nd December 2018

‘मुख्यमंत्री क्षय रोग निवारण योजना“ का हिमाचल प्रदेश में प्रभावी कार्यान्वयन

 
राज्य में क्षयरोग को 2023 तक समाप्त करने को लक्ष्य
         क्षय रोग एक भयावह व जानलेवा बीमारी है जो हर साल कई बहुमूल्य जिंदगियों का काल का ग्रास बनाती है। भारत सरकार ने 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा है जबकि राज्य 2023 से पहले इसे हासिल करने के लिए तैयार है ताकि हिमाचल देश का पहला टीबी मुक्त राज्य बन सके। इस लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से राज्य में एक नई योजना ‘मुख्यमंत्री क्षय रोग निवारण योजना“ शुरू की गई है। योजना के तहत निजी चिकित्सकों के लिए 12 चिकित्सा शिक्षा सम्मेलन तथा दवा विक्रेताओं के लिए 12 कार्यशालाएं आयोजित की जा चुकी हैं।
        राज्य के सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में हर साल लगभग 14 हजार टीबी रोगियों का पता लगाकर इनका उपचार किया जाता है। वर्ष 2017 में 14070 के लक्ष्य के मुकाबले राज्य ने सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में उपचार के लिए 15000 नए टीबी रोगियों का पंजीकरण किया। 2500 के लक्ष्य के मुकाबले लगभग 900 नए टीबी रोगियों को राज्य के निजी अस्पतालों से अधिसूचित किया गया। हिमाचल प्रदेश में निजी क्षेत्र में क्षय रोग से पीढ़ित व्यक्तियों के वास्तविक आंकड़े प्राप्त न होने से रोगियों की संख्या में अंतर आ जाता है। क्षय रोग से राज्य में हर साल करीब 550 मौतें हो जाती हैं।
वर्तमान में उपचार के लिए 450 दवा प्रतिरोधी टीबी मामलें हैं; जिनमें से 300 में बीमारी का पता लगाकर इनका इलाज किया जा रहा है।
संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) को हिमाचल प्रदेश में चरणबद्ध तरीके से लागू किया गया है। हमीरपुर भारत का पहला ऐसा जिला है जहां 1995 में पायलट आधार पर कार्यक्रम को लागू किया गया। इसके बाद 1998 8 में कांगड़ा और मंडी में इसे लागू किया गया। पूरे राज्य को जनवरी 2002 में शामिल किया गया था। टीबी रोगियों का उपचार प्रत्यक्ष पर्यवेक्षक के तहत किया जाता है जिसे डॉट्स कहा जाता है। लेकिन विभिन्न कारणों से कुछ रोगी उपचार पूरा नहीं करते हैं या अधूरा उपचार ही करवा पाते हैं। कुछ विशेषज्ञ बाजार से टीबी की दवाइयां लिखते हैं, जो काफी महंगी हैं और रोगी दवाओं को बीच में लेना बंद कर देता है जिससे इलाज अधूरा रहने के कारण वह गंभीर मुसीबत में पड़ जाता है। 
अपूर्ण, अपर्याप्त उपचार और उपचार के विभिन्न नियमों से मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (एमडीआर) का उद्भव होता है जो उपलब्ध दवाओं से ठीक नहीं हो पाती है। टीबी के इस रूप को नियंत्रित करना मुश्किल है और उपचार भी काफी महंगा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि टीबी रोगियों का गुणवत्तायुक्त विश्वसनीय  प्रयोगशालाओं द्वारा बीमारी का सही तरीके से पता लगाकर एक सुव्यवस्थित स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली द्वारा डाट्स् के तहत इलाज किया जाता है, तो निश्चित रूप से टीबी के इस नए रूप को कम किया जा सकता है।
आरएनटीसीपी का उद्देश्य सभी मामलों में 90 प्रतिशत अधिसूचना दर अथवा पंजीकरण को हासिल करना है। साथ ही टीबी के सभी नए मामलों के अलावा पुनः उपचार के 85 प्रतिशत मामलों में 90 प्रतिशत सफलता दर प्राप्त करना है। इससे राज्य के 90 प्रतिशत क्षयरोगी उपचार के लिए कवर होंगे। 
16570 के लक्ष्य के मुकावले कुल 17638 रोगियों को अधिसूचित किया गया है। बेहतर प्रदर्शन के लिए डुप्लिकेट प्रविष्टि एक मुद्दा रहता है। 2018 में 24.11.2018 तक कुल 15023 रोगी पंजीकृत किए गए और निजी क्षेत्र में भी पंजीकरण में पिछले वर्ष की तुलना में सुधार हुआ है। 
कुल्लू, उना, चंबा और हमीरपुर में चार जिला डीआरटीबी केंद्र कार्यरत हैं और आईजीएमसी शिमला को 2018 में नोडल डीआर-टीबी केंद्र के रूप में परिचालित किया गया था। नाहन, बिलासपुर, डीडीयू अस्पताल शिमला, अंचल अस्पताल धर्मशाला, रिकांगपिओ, तथा केंलग जिला डीआरटीबी केंद्रों सहित एक नोडल डीआरटीबी केंद्र मण्डी का सिविल कार्य की प्रक्रिया जारी है। राज्य ड्रग स्टोर  टीबीएस धर्मपुर का सिविल कार्य भी शुरू किया जाएगा। 
कुल्लू, पलामपुर, नूरपुर, रामपुर, केंलग, रिकांगपिओ, डीडीयू जेएच शिमला तथा जवालमुखी अस्पतालों में सीबीएनएएटी मशीनें स्थापित की गई हैं जबकि जेएच धर्मशाला, सीएच नालागढ़ और आईजीएमसी शिमला में सीबीएनएएटी मशीनों की स्थापना प्रक्रियाधीन है। राज्य में जिला सोलन के धर्मपुर का टीबी सैनिटॉरियम पुराने टीबी अस्पतालों में से एक है। इसमें आरएनटीसीपी के कई घटक हैं और क्षयरोग के बेहतर इलाज की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
राज्यभर में मुख्यमंत्री क्षयरोग निवारण योजना के तहत वर्तमान में पंचायती राज संस्थानों के लिए जागरूकता एवं संवेदनशीलता कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। राज्य ने जुलाई 2018 में एक नई एमडीआर टीबी दवा ‘बेडाक्विलाइन’ शुरू की है और इसके तहत कुल 25 मरीजों को इलाज पर रखा गया है। सक्रिय टीबी मामलों का पता लगाने के लिए राज्य के अधिकांश जिलों में अभियान के दो दौर आयोजित किए गए हैं और इन अभियानों के माध्यम से लगभग 170 नए मामले सामने आए हैं।
     राज्य में जनवरी 2019 में ‘टीबी मुक्त हिमाचल अभियान पखवाड़ा’ आरंभ किया जाएगा जिसमें विशेष रूप से सक्रिय टीबी के मामलों की खोज कर इन्हें उपचार की सुविधा प्रदान की जाएगी। 
 
 

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