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-12th April 2015

राज्य प्रायोजित योजनाएं मछुआरों के लिये बनीं वरदान

प्रदेश में बडे़ पैमाने पर मौजूद प्राकृतिक एवं मानव निर्मित जलाशयों तथा यहां बहने वाली अनेक नदियों में मछली पालन की अपार संभावनाएं मौजूद है। प्रदेश सरकार इसके समुचित दोहन की दिशा में कारगर प्रयास कर रही है। कृषि एवं बागवानी के साथ मछली व्यवसाय लोगों की आर्थिकी को संबल बनाने में अतिरिक्त साधन के रूप में विकसित हो रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा विद्युत परियोजनाओं के अन्तर्गत निर्मित जलाश्यों में मत्स्य पालन को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विभिन्न योजनाओं को कार्यान्वित की जा रही है। राज्य में 12 हजार से अधिक मछुआरे इस व्यवसाय से जुडे़ हैं। इन परिवारों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो और वे खुशहाल जीवनयापन कर सकें, इसके लिये प्रदेश सरकार ने बहुत सी योजनाएं स्वीकृत की हैं। इनमें प्रदेश मेें मछली उत्पादन को बढ़ावा देने, मछुआरों के कौशल शोधन तथा प्रमुख शहरों में मछली की उपलब्धता को बढ़ावा देने के दृष्टिगत राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एन.एफ.डी.बी.) हैदराबाद द्वारा वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान प्रदेश के लिए 1.2 करोड़ रुपये की चार महत्वपूर्ण योेजनाएं स्वीकृत की गई हैं। इन चार योजनाओं में विपणन की बुनियादी सुविधाओें का विस्तार, जलाशय मछुआ समुदाय के मछली पकड़ने के कौशल को बढ़ाने लिए वैज्ञानिक तकनीक प्रदान करना, विभिन्न मत्स्य संसाधनों का विस्तार करने वाला एक व्यापक मत्स्य विज़न दस्तावेज बनाना और राज्य में रेनबो ट्राऊट पालन कार्यक्रम का विस्तार सम्मिलित है। चारों योजनाओं के तहत प्राप्त 1.2 करोड़ के मुकाबले प्रदेश मत्स्य विभाग द्वारा 1.9 करोड़ रुपये खर्च करके अधिकतर लक्ष्य हासिल कर लिए गए हैं। केन्द्र प्र्रायोजित इस विपणन योजना के तहत 36 लाख रुपये की लागत से चार मोबाइल मछली बाजार वाहन खरीदे गए हैं। इन वाहनों के द्वारा राज्य के प्रमुख शहरों व चण्डीगढ़ तक ग्राहकों को उनके घर-द्वार पर ही ताजा मछली की आपूर्ति सुनिश्चित की गई है। इस से न केवल हिमाचली उपभोक्ताओं की ताजा मछली की मांग पूरी हुई है, बल्कि गरीब मछुआ समुदाय को उनके उत्पाद का बेहतर मूल्य भी प्राप्त हो रहा है। इसके अतिरिक्त शीत भण्डारण के अभाव में आवतरण केन्द्रों पर, विशेषकर गर्मियों के महीने में बड़ी मात्रा में मछली की खराब होने की समस्या से भी मछुआरों को छुटकारा मिला है। दूसरी योजना के अन्तर्गत जलाशय मछुआरों को व्यापक स्तर पर प्रशिक्षण प्रदान किया जाना था। इस योजना के अंर्तगत 6.85 लाख रुपये खर्च करके प्रदेश भर के 900 जलाशय मछुआरों को समूहों में प्रशिक्षित किया गया। योजना से उन मछुआरों की लम्बे समय से चली आ रही मांग पूरी हुई है जो मत्स्य उपकरण, प्रसंस्करण, संरक्षण आदि विषयों में आधुनिक तकनीकी जानकारी प्राप्त कर मछली उत्पादन क्षेत्र को बढ़ाने के लिये प्रयासरत हैं। यह योजना मछुआरों को अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान कर उनकी आर्थिकी सुदृढ़ बनाने में भी सहायक सिद्ध हो रही है। तीसरी योजना के तहत एनएफडीबी ने एक व्यापक मात्स्यिकी विजन योजना मसौदा तैयार करने के लिए प्रदेश को उदार वित्तिय अनुदान प्रदान करने का प्रावधान योजना में किया है। पांच लाख रुपये की लागत से व्यापक मात्स्यिकी विजन योजना मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया जारी है जो आगामी दो महिनों में बनकर तैयार हो जाएगा। इसके तहत एक्वाकल्चर, जलाश्य में मछली पकड़ना, बैकयार्ड मत्स्य पालन आदि के माध्यम से वृहद स्तर पर ग्रामीण विकास पर बल दिया गया है। चैथी योजना के अन्तर्गत ट्राउट मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के दृष्टिगत तथा राज्य में रेनबो ट्राउट पालन की सफलता के दृष्टिगत 50.25 लाख रुपये की लागत से 100 नई ट्राउट इकाईयों के निर्माण का कार्य प्रगति पर है, जिनमें से अधिकतर इकाईयां तैयार हो गई हैं और कार्य करना आरम्भ कर दिया है। इसके अतिरिक्त, कांगड़ा में 12 लाख रुपये की लागत से दो सजावटी मछली इकाईयों का निर्माण किया जा रहा है जिनके बन जाने से लोगों की सजावटी मछली की मांग को पूरा किया जा सकेगा।

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