हिमाचल में वर्षा पर निर्भर खेती का समुचित दोहन करने के लिये नवीनतम सोच और तकनीकी को अपनाने की जरूरत पर बल दिया गया है। इस उद्देश्य से प्रदेश सरकार ने क्षेत्र विकास, जल एंव मृदा संरक्षण, वनीकरण और स्थाई भूमि प्रबंधन के लिये जलागम विकास कार्यक्रम का राज्य में प्रभावी कार्यान्वयन किया है। यह कार्यक्रम राज्य में आजीविका और उत्पादन को बढ़ावा देने का मुख्य स्त्रोत बनकर उभरा है।
हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य जहां कृषि योग्य भूमि कम है और इसमें से भी कम क्षेत्र में सिंचाई हो पाती है, ऐसे में राज्य की आबादी को भोजन, पशुओं को चारा और ईंधन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जलागम विकास चलाया जा रहा है। जलागम विकास कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य प्रदेश में मौजूदा बंजर व विकृत भूमि, खाली पड़ी भूमि, सूखाग्रस्त क्षेत्रों को विकसित करना है। इसके अतिरिक्त, भूमि, जल व प्राकृतिक संसाधनों को सरंक्षित करके पारिस्थितिकी संतुलन को बहाल करने के साथ रोजगार सृजन, गरीबी उन्मूलन, सामुदाायिक सशक्तिकरण और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के आर्थिक संसाधनों को मजबूत करना है।
जलागम विकास कार्यक्रम के मुख्य तीन उप-घटक जिनमें एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम तथा मरूस्थल विकास कार्यक्रम शामिल हैं। इन तीनों घटकों को नया दृष्टिकोण देते हुए केन्द्र सरकार ने वर्ष 2008 से एकीकृत जलागम प्रबन्धन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) को आरम्भ किया है।
आईडब्ल्यूएमपी से पूर्व प्रदेश को तीन उपघटकों के अन्तर्गत 894914 हेक्टेयर क्षेत्र के उपचार के लिये 529.82 करोड़ रूपये की राशि स्वीकृत की गई है। इसके तहत एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम चम्बा, हमीरपुर, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, मण्डी, सिरमौर व सोलन जिलों मंें कार्यान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत 254.12 करोड़ रूपये की लागत की कुल 67 परियोजनाएं स्वीकृत करके 452311 हेक्टेयर भूमि के उपचार का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। एकीकृत सूखाग्रस्त भूमि विकास कार्यक्रम को बिलासपुर, ऊना और सोलन जिलों में कार्यान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत 116.50 करोड़ रूपये की कुल 412 माइक्रो जलागम परियोजनाएं स्वीकृत कर 205833 हेक्टेयर भूमि का उपचार निर्धारित किया गया है। मरूस्थल क्षेत्र विकास कार्यक्रम को प्रदेश के जनजातीय जिलों लाहौल-स्पिति तथा किन्नौर जिला के पूह में कार्यान्वित किया गया है। कार्यक्रम के तहत 159.20 करोड़ रूपये की 552 माइक्रो जलागम परियोजनाओं पर कार्य करके 236770 हेक्टेयर क्षेत्र को उपचारित करने के लक्ष्य पर कार्य किया जा रहा है।
आईडब्ल्यूएमपी की शुरूआत के उपरान्त उक्त तीनों घटकों के लिये केन्द्र सरकार द्वारा सांझा दिशा निर्देश जारी किये गये हैं। इस कार्यक्रम के तहत राज्य के लिये नई परियोजनाओं की मंजूरी के लिये सामरिक नीति दस्तावेज आवश्यक है। कार्यक्रम के तहत प्रदेश सरकार ने राज्य के वर्षा सिंचित 3112472 हेक्टेयर क्षेत्र विकास के लिये 4668 करोड़ रूपये की योजना तैयार करके केन्द्र सरकार से अनुमोदित करवाई है।
प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र में सिंचित भूमि, बर्फ से ढके क्षेत्र, घने वन क्षेत्र, गैर कृषि भूमि के अलावा एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र कार्यक्रम तथा मरूस्थल विकास कार्यक्रमों को इस कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है। शेष क्षेत्र जिनमें वन व गैर वन भूमि शामिल हैं, को सामरिक योजना में विचार के लिये शामिल किया गया है तथा अगले 12 से 15 वर्षों के बीच एकीकृत जलागम प्रबन्धन कार्यक्रम के तहत प्रस्तावित क्षेत्र में कार्य किया जाएगा।
आईडब्ल्यूएमपी के अन्तर्गत प्रदेश में 163 परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। इनके अन्तर्गत वर्ष 2014-15 तक 1260 करोड़ रूपये व्यय करके 839972 हेक्टेयर भूमि के उपचार का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें से अभी तक 70074 हेक्टेयर क्षेत्र के उपचार पर 164 करोड़ रूपये व्यय किये गए हैं। यह कार्यक्रम दीर्घकालिक अवधि के लिये तैयार किया जाता है और इसके लिये चरणबद्ध तरीके से धनराशि केन्द्र सरकार से प्राप्त होती है। पिछले दो वर्षों के दौरान 375 करोड़ रूपये की लागत की 53 नई परियोजनाएं इसी कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वीकृत की गई हैं जिसके तहत 249916 हेक्टेयर भूमि को कवर किया जायगा।
आईडब्ल्यूएमपी के सफल कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थानों का महत्वपूर्ण योगदान है। योजनाओं के लिये प्रस्ताव ग्राम पंचायत स्तर पर तैयार किये जाते हैं। अतः कार्यक्रम की सफलता पंचायती राज संस्थानों की सक्रियता पर भी निर्भर करती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने सभी हितधारकों के क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण के लिये विश्वविद्यालयों और प्रतिष्ठित संस्थानों से विशेषज्ञों को बुलाया जाता है। इसके अतिरिक्त, समय-समय पर जागरूकता शिविरोें का भी आयोजन किया जा रहा है।
आईडब्ल्यूएमपी के अन्तर्गत पशुधन और मत्स्य पालन का व्यवस्थित तरीके से प्रबंधन, दुग्ध उत्पादन और डेयरी उत्पादों तथा इनके विपणन के लिये किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वर्षा सिंचित क्षेत्रों में पशुधन को लोगों की आय एक प्रमुख स्त्रोत बनाना इसके उद्देश्यों में हैै। जलागम विकास परियोजनाओं के साथ पशुपालन गतिविधियां जुड़ने से योजना के तहत चिन्हित क्षेत्रों में लोगों को आजीविका के बेहतर एवं टिकाऊ साधन सुनिश्चित होंगे।
कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये जलागम समिति द्वारा विभागीय तकनीकी की मदद से ग्राम पंचायत स्तर पर स्वंय सहायता समूहों का गठन किया गया है। इन समूहों में गरीब, लघु एवं सीमान्त किसान, मजदूर, महिलाएं, चरवाहे और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोग शामिल किये गए हैं। इन समूहों की आजीविका जलागम परियोजना से सीधे तौर पर जुड़ी है। प्रत्येक स्वंय सहायता समूह को नोडल एजेन्सी द्वारा निर्धारित धनराशि उपलब्ध करवाई जाती है।