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3rd September 2017

हिमाचल में तीव्र जल विद्युत उत्पादन के लिए नवीन कार्य-योजना

हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्रदेश में विद्यमान अपार जल विद्युत क्षमता के तीव्र दोहन के लिए एक महत्वाकांक्षी, नवीन एवं पर्यावरण मित्र कार्य योजना तैयार की है। प्रदेश में 27436 मैगावाट की सूक्ष्म जल विद्युत सम्भावना में से 10351 मैगावाट का दोहन इस क्षेत्र में कार्य कर रही विभिन्न जानी-मानी एजेंसियों की सक्रिय सहभागिता से पहले ही कर लिया गया है।
राज्य सरकार ने प्रदेश में परियोजनाओं के कार्यान्वयन में आने वाली मुश्किलों से निपटने व निवेशकों की सुविधा के लिए नीति प्रावधानों को सरल बनाने की दिशा में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। जिला स्तर पर एक समय सीमा के भीतर विभिन्न स्वीकृतियां प्राप्त करने के लिए एक नया तंत्र विकसित किया गया है। निर्माताओं को विभिन्न स्वीकृतियों के लिए विभिन्न जिला स्तरीय अधिकारियों के बजाए सीधे तौर पर सम्बन्धित उपायुक्तों को आवेदन करने की सुविधा प्रदान की गई है। 
प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाओं में सुरक्षा तथा गुणवत्ता नियंत्रण को सुनिश्चित बनाने के लिए सरकार ने ऊर्जा निदेशालय के तत्वावधान में सुरक्षा एवं गुणवत्ता प्राधिकरण का सृजन किया है। बांधों की सुरक्षा तथा संचालन प्रक्रियाओं के लिए अनिवार्य खरीद एवं प्रबन्धन के लिए दिशा-निर्देशों को वैश्विक मानकों के अनुरूप लागू किया जा रहा है।
संचालित परियोजनाआें के अनिवार्य निरीक्षण को सुनिश्चित बनाया गया है तथा मानसून के दौरान दुर्घटनाओं को रोकने के लिए बाढ़ सुरक्षा प्रबन्धन प्रणाली को भी लागू किया जा रहा है। परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी व निर्माताओं द्वारा प्राप्त की गई उपलब्धियों की समीक्षा के लिए एक निगरानी इकाई भी स्थापित की गई है।
प्रदेश सरकार ने तकनीकी स्वीकृति प्राप्त करने की प्रक्रिया भी सरल बनाई है तथा ऊर्जा निदेशालय को प्रक्रिया के संचालन व 1000 करोड़ रूपये से कम की परियोजनाओं को तकनीकि स्वीकृति प्रदान करने के लिए प्राधिकृत किया गया है। गत साढ़े चार वर्षों के दौरान अभी तक लगभग 700 मैगावाट क्षमता की 167 परियोजनाओं को तकनीकी स्वीकृति प्रदान की गई है। इस अवधि के दौरान 2067 मैगावाट की कुल क्षमता वाली लगभग 31 जल विद्युत परियोजनाओं को शुरू किया गया तथा 10 मैगावाट घानवी, 800 मैगावाट कोलडैम, 412 मैगावाट रामपुर, सतलुज नदी पर 130 मैगवाट की कशरंग, ब्यास नदी पर 520 मैगावाट की पार्वती चरण-3 तथा रावी नदी पर 36 मैगावाट की छांजु परियोजनाएं सरकार द्वारा आरम्भ की गई महत्वपूर्ण परियोजनाओं में शामिल हैं।    
हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड जहां एक ओर प्रदेश के पर्यावरण को संरक्षित करने के उद्देश्य से 300 मैगावाट क्षमता वाली कम से कम 22 पर्यावरण मित्र परियोजनाओं को कार्यान्वित करने की पहल की है, वहीं दूसरी ओर प्रदेश में बहने वाली नदियों, विशेषकर ब्यास, रावी तथा पब्बर नदियों की क्षमता के दोहन की सम्भावनाओं को तीव्रता से तलाश रहा है। कुल्लू जिला के रायसन में प्रायोगिक आधार पर 18 सूक्ष्म परियोजनाओं को कार्यान्वित किया जाएगा। विश्व बैंक ने पहले ही इस उद्देश्य के लिए धन उपलब्ध करवाने के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी है। 
राज्य बिजली बोर्ड ने पहले ही 487.45 मैगावाट क्षमता वाली लगभग 22 जल विद्युत परियोजनाओं को शुरू कर दिया है तथा 100 मैगावाट ऊहल चरण-2 परियोजना का कार्य भी लगभग पूरा हो चुका है जिसका प्रायोगिक आधार पर शीघ्र परिचालन आरम्भ कर दिया जाएगा। राज्य सरकार ने राज्य बिजली बोर्ड की कार्य क्षमता तथा विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए चम्बा के देवीकोठी (16 मैगावाट) तथा हाएल (18 मैगावाट) का निर्माण कार्य बिजली बोर्ड को सौंपा है। 
राज्य सरकार ने बोर्ड की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए विभिन्न पग उठाए हैं तथा भारतीय रिजर्व बैंक से 2890 करोड़ रूपये का ऋण लिया है ताकि बोर्ड उच्च ब्याज दरों पर पहले लिए गए ऋणों की अदायगी कर सके। 
राज्य सरकार ने परियोजनाओं से प्रभावित परिवारों के उपयुक्त पुनर्वास के लिए अनेक कदम उठाए हैं तथा इन परियोजनाओं के शुरू होने के उपरान्त एक प्रतिशत अतिरिक्त निःशुल्क विद्युत की बिक्री का प्रावधान किया है ताकि इससे प्राप्त राजस्व को प्रभावित परिवारों की सहायता के लिए उपयोग में लाया जा सके। प्रदेश इस प्रकार की योजना को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने वाला देश का पहला राज्य है तथा सत्र 2012-13 से अभी तक लगभग 6.74 करोड़ रूपये पात्र परिवारों को प्रदान किए जा चुके हैं। राज्य सरकार परियोजनाओं से प्रभावित परिवारों को प्रत्येक को 100 यूनिट निःशुल्क बिजली भी  प्रदान कर रही है। 
राज्य सरकार ने निःशुल्क एवं इक्विटी पॉवर की बिक्री से 3345 करोड़ रूपये का राजस्व अर्जित किया है तथा इस क्षेत्र में अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों को शामिल करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं ताकि चिन्हित जल विद्युत सम्भावनाओं का दोहन समय सीमा के भीतर किया जा सके। वह दिन दूर नहीं जब राज्य पूरे देश की बढ़ती बिजली की मांग को अकेले पूरा करने में सक्षम होगा तथा प्रदेश देश में ‘ऊर्जा राज्य’ के रूप में उभरेगा।  
 

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