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30th May 2016

पीलिया से बचाव के लिए एहतियात बरतें लोग

 
‘जल ही जीवन है’ यह कहावत मनुष्य सहित सभी सजीव प्राणियों के जीवन में जल के महत्व एवं अनिवार्यता को दर्शाती है। जल क्योंकि हमारे अस्तित्व के लिए अत्यावश्यक है इसलिए इसका शुद्ध, साफ तथा स्वच्छ होना हमारी सेहत के लिए जरूरी है। रोगाणुओं, हानिकारक अशुद्धियों और अनावश्यक मात्रा में लवणों से युक्त दूषित जल अनेक बीमारियों को जन्म देता है। दूषित जल के सेवन से टाइफाईड, डायरिया, बुखार, हैजा, हैपेटाईटिस, पीलिया आदि बीमारियां होने का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है।
     कांगड़ा जिला में स्वास्थ्य और सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर पेयजल स्त्रोतों की साफ-सफाई एवं क्लोरीफिकेशन करता है इसके अतिरिक्त सैंपल लेकर पेयजल की जांच सुनिश्चित बनाई जा रही है, ताकि लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाया जा सके।
     उपायुक्त रितेश चौहान ने सभी लोगों से जल स्त्रोतों को साफ-सुथरा रखने में सहयोग करने तथा अपने आस-पास के परिवेश में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखने का आग्रह किया है। उन्होंने लोगों से अपने घरों में पानी की टंकियों की समय-समय पर सफाई करने और अस्वच्छ पेयजल एवं खाद्य् पदार्थों के सेवन से बचने का आग्रह भी किया है।
     जिला के सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने अवगत करवाया कि विभाग ने शुद्ध पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित बनाने के लिए प्रभावी प्रयास किए हैं। उन्होंने बताया कि जनवरी माह से 25 मई, 2016 तक की अवधि में धर्मशाला मंडल व वृत (सर्कल) में पानी के 750 सैंपल जांचे गए हैं, जो सभी ठीक पाए गए हैं।
जल जनित रोगों में एक विषाणु जनित रोग पीलिया होता है।   
    दरअसल वायरल हैपेटाइटिस या जोन्डिस को साधारणतः लोग पीलिया के नाम से जानते हैं। यह रोग बहुत ही सूक्ष्म विषाणु (वाइरस) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं, परन्तु जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं, लोग इसे पीलिया कहते हैं।
     पीलिया रोग मुख्यतः तीन प्रकार का होता है; वायरल हैपेटाइटिस ए, वायरल हैपेटाइटिस बी तथा वायरल हैपेटाइटिस नान ए व नान बी।
कैसे होता है रोग का प्रसार
     यह रोग ज्यादातर ऐसे स्थानों पर होता है जहां के लोग व्यक्तिगत व वातावरणीय सफाई पर कम ध्यान देते हैं। भीड़-भाड़ वाले इलाकों में भी यह ज्यादा होता है। वायरल हैपटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है। वायरल हैपटाइटिस ए तथा नान ए व नान बी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के नजदीकी सम्पर्क से होता है। ये वायरस रोगी के मल में होते हैं तथा पीलिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के मल से, दूषित जल, दूध अथवा भोजन द्वारा इसका प्रसार होता है।
     ऐसा हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंख, नाखून या शरीर आदि पीले नहीं दिख रहे हों परन्तु यदि वे इस रोग से ग्रस्त हो तो अन्य रोगियों की तरह ही रोग को फैला सकते हैं। वायरल हैपटाइटिस बी खून व खून से निर्मित पदार्थों के आदान-प्रदान एवं यौन क्रिया द्वारा फैलता है। यहां खून देने वाला रोगी व्यक्ति रोग वाहक बन जाता है। बिना उबाली सुई और सिरेंज से इन्जेक्शन लगाने पर भी यह रोग फैल सकता है।
     पीलिया रोग से ग्रस्त व्यक्ति वायरस, निरोग मनुष्य के शरीर में प्रत्यक्ष रूप से अंगुलियों से और अप्रत्यक्ष रूप से रोगी के मल से या मक्खियों द्वारा पहुंच जाते हैं। इससे स्वस्थ मनुष्य भी रोग ग्रस्त हो जाता है।
रोग के लक्षण
     क्षेत्रीय अस्पताल धर्मशाला के चिकित्सक डॉ0 अभिनव राणा बताते हैं कि ए प्रकार के पीलिया और नान ए व नान बी तरह के पीलिया रोग के संक्रमण के तीन से छः सप्ताह के बाद ही रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
     बी प्रकार के पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) के रोग की छूत के छः सप्ताह बाद ही रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
पीलिया रोग के लक्षण
     डॉ0 राणा बताते हैं कि पीलिया रोग के मुख्य लक्षण रोगी को बुखार रहना, भूख न लगना, चिकनाई वाले भोजन से अरूचि, जी मिचलाना और कभी कभी उल्टियां होना, सिर में दर्द होना, सिर के दाहिने भाग में दर्द रहना, आंख व नाखून का रंग पीला होना, पेशाब पीला आना तथा अत्यधिक कमजोरी और थका थका सा लगना इत्यादि होते हैं।  
रोग की जटिलताएं
     ज्यादातर लोगों पर इस रोग का आक्रमण साधारण ही होता है। परन्तु कभी-कभी रोग की भीषणता के कारण कठिन लीवर (यकृत) दोष उत्पन्न हो जाता है।
     बी प्रकार का पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) ज्यादा गम्भीर होता है इसमें जटिलताएं अधिक होती है। इसकी मृत्यु दर भी अधिक होती है।
उपचार
     डॉ0 राणा का कहना है कि रोग के लक्षण प्रतीत होने पर रोगी को शीघ्र ही डॉक्टर के पास जाकर परामर्श लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए एवं लगातार जांच कराते रहना चाहिए। रोगी को डॉक्टर की सलाह के अनुसार भोजन में प्रोटीन और कार्बोज वाले पदार्थाें का सेवन करना चाहिए। नीबूं, संतरे तथा अन्य फलों का रस भी इस रोग में गुणकारी होता है, वसा युक्त गरिष्ठ भोजन का सेवन इसमें हानिकारक है। चावल, दलिया, खिचड़ी, थूली, उबले आलू, शकरकंदी, चीनी, ग्लूकोज, गुड, चीकू, पपीता, छाछ, मूली आदि कार्बोहाड्रेट वाले पदार्थ हैं, इनका सेवन अधिक करना चाहिए।
रोग की रोकथाम एवं बचाव
     पीलिया रोग के प्रकोप से बचने के लिए कुछ साधारण बातों का ध्यान रखना जरूरी है। खाना बनाने, परोसने, खाने से पहले व बाद में और शौच जाने के बाद में हाथ साबुन से अच्छी तरह धोने चाहिए। भोजन जालीदार अलमारी या ढक्कन से ढक कर रखना चाहिए, ताकि मक्खियों व धूल से बचाया जा सकें। ताजा व शुद्ध गर्म भोजन करें दूध व पानी उबाल कर पीना चाहिए।  
     स्वच्छ जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जलस्त्रोतों की और उनके आस-पास साफ-सफाई रखें, अपने घरों की पानी की टकियों की भी समय-समय से सफाई रखें, एफटीके से पानी की गुणवत्ता चैक करें तथा उबला हुआ पानी पीएं। पानी में क्लोरीन डालंे तथा प्रयोगशाला में पानी टैस्ट के लिए भेजें।
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